Thursday, 13 September 2018

Waqt guzar gaya

कहीं पढ़ा और
कुछ दोस्तों से
सुना
कि
समय गुज़र
रहा है
तेज़ी से।

अपने सफ़ेद
बालों से
पूछा
तो पुख्ता
हुआ

घुटनों ने भी
हामी भरी
और याददाश्त
बड़ी नज़ाकत से
खांसी

चेहरे की झुर्रियों ने
कहा
"तो क्या ?"
हम तो फिर भी
हँसेंगे।

गौर से देखा
तो आईने से
देख रहे थे
पिताजी हमें

और मुँह खोला तो
माताजी की
बोली निकली।

अब पता चला
वक़्त का छलावा
आने से पहले
बुलावा

हम पूरी तरह
अतीत में
ढल चुके थे

हम अपने
माँ बाप में
तब्दील
हो चुके थे। 

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