Thursday, 13 September 2018

Aprakaashit kavya (Unpublished poetry)



जलते हैं कुछ लोग
कहते हैं
क्या लिखते हो ?
पन्ने स्याह
करते हो ?
कल गुज़र जाओगे
तो इन्हे कोरा
कौन करेगा ?
इतने सारे
शब्दों के रंगों को
गोरा
कौन करेगा ?

मैंने कहा
कुछ पन्ने
रंगीन ही सही
कुछ सवाल
संगीन ही सही

हर किश्ती
किनारे लगे
ज़रूरी तो नहीं
हर बाग़ में फवारें लगें
ज़रूरी तो नहीं

कुछ चिड़े तो
यूँ ही गा कर
गुज़र गए
कितने महान
लोग चुपचाप
अपनी छाप
छोड़ गए

हर कलम
बिकाऊ हो
ज़रूरी तो नहीं
हर कलाम पर
नोट बरसे
ज़रूरी तो नहीं। 

1 comment:

  1. Jio mere dost......Kuch BHI zarooei Nahi yehi toh Jamaal hai

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