अँधेरे की गुमनामी में
शोर का ढिंढोरा पीटते
हुए
एक नहीं दो नहीं
चार उल्लू
चहारदीवारी
पर बैठ कर
बोलते
हैं.
आती जाती
सुंदरियों पर फब्ती
कशते हैं ?
या कंपकंपाती
ठंड को ताना
मारते हैं ?
घर से दूर
उड़ गए
उल्लू भाईयों
को याद कर
रोते हैं ?
या अपनी
कोलाहल
से छिड़ी व्हाट्सप्प
पर बहस
को हँसते हैं
चार उल्लू
शाम की गोष्ठी
में रोज़ाना
गप मारते
हैं
और
हु हु कर
ठहाके
भरते हैं
शोर का ढिंढोरा पीटते
हुए
एक नहीं दो नहीं
चार उल्लू
चहारदीवारी
पर बैठ कर
बोलते
हैं.
आती जाती
सुंदरियों पर फब्ती
कशते हैं ?
या कंपकंपाती
ठंड को ताना
मारते हैं ?
घर से दूर
उड़ गए
उल्लू भाईयों
को याद कर
रोते हैं ?
या अपनी
कोलाहल
से छिड़ी व्हाट्सप्प
पर बहस
को हँसते हैं
चार उल्लू
शाम की गोष्ठी
में रोज़ाना
गप मारते
हैं
और
हु हु कर
ठहाके
भरते हैं
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